जब छोड़ दी नांव मझधार में,
तो अब आर क्या, अब पार क्या|
अब तो आ ही गया भवधार में,
तो लौटने का अब विचार क्या |
डगमगाने लगी भंवर बीच नईया,
चलने लगे तूफ़ान बहुत तेज तो क्या|
जब उतरा हूँ सागर में लेके नईया,
आ गया उफान बहुत तेज तो क्या|
बह रही बहुत तेज लहरों की ये धारा,
आया हूँ लड़ने फिर डूबने का डर क्या|
नहीं दिख रहा मुझे अब कोई किनारा,
खो जाए विश्वास मेरा, है ये समंदर क्या|
कुछ भी हो लौटूंगा नहीं मझधार से,
चुना हु ऐसा सफ़र मर गया तो क्या|
लौट के हंसी नहीं कराऊँगा संसार से,
फिर से सम्हलूँगा, डगमगा गया तो क्या|
तो अब आर क्या, अब पार क्या|
अब तो आ ही गया भवधार में,
तो लौटने का अब विचार क्या |
डगमगाने लगी भंवर बीच नईया,
चलने लगे तूफ़ान बहुत तेज तो क्या|
जब उतरा हूँ सागर में लेके नईया,
आ गया उफान बहुत तेज तो क्या|
बह रही बहुत तेज लहरों की ये धारा,
आया हूँ लड़ने फिर डूबने का डर क्या|
नहीं दिख रहा मुझे अब कोई किनारा,
खो जाए विश्वास मेरा, है ये समंदर क्या|
कुछ भी हो लौटूंगा नहीं मझधार से,
चुना हु ऐसा सफ़र मर गया तो क्या|
लौट के हंसी नहीं कराऊँगा संसार से,
फिर से सम्हलूँगा, डगमगा गया तो क्या|
wah !!
ReplyDelete#inspired
धन्यवाद!
Deleteबहुत अछा !
ReplyDeleteशुक्रिया!!!
Deleteबहुत ही बढ़िया और यही सोच रखना की
ReplyDeleteकुछ करना है कुछ बनना है
जयगुरुदेव
जयगुरुदेव भईया!!
Deleteजी कोशिश होगी!
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