Monday, September 23, 2013

गाँव की याद

मैं अब आ रहा हूँ तुझसे मिलने ओ मेरे गाँव,
घर की ओर चलने को आतुर हो रहे मेरे पांव,
आज फिर याद आ रही है तेरे बगिय की छांव,
तेरे प्यार की धाराओं में डोल रही मन की नांव|

हर पल जलाती  है तेरी यादों की कड़ी धूप,
हर समय, हर जगह झलकता है तेरा रूप|
एक बार फिर तुझसे मिलना चाहता है मन,
बार बार खेतों की खड़ी फसलों में विचरता है मन|

मेरा तन फिर तेरी खुशबुओं में डूबना चाहता है,
तेरी यादों की अश्रुधाराओं में नहाना चाहता है|
वैसे तो मन लगाने को है यहाँ बहुत कुछ,
पर तेरे बिना नहीं भाता यहाँ का सब कुछ|

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