Monday, September 23, 2013

मझधार में !

जब छोड़ दी नांव मझधार में,
तो अब आर क्या, अब पार क्या|
अब तो आ ही गया भवधार में,
तो लौटने का अब विचार क्या |

डगमगाने  लगी भंवर बीच नईया,
चलने  लगे तूफ़ान बहुत तेज तो क्या|
जब उतरा हूँ सागर में लेके नईया,
आ गया उफान बहुत तेज तो क्या|

बह रही बहुत तेज लहरों की ये धारा,
आया हूँ लड़ने फिर डूबने का डर क्या|
नहीं दिख रहा मुझे अब कोई किनारा,
खो जाए विश्वास मेरा, है ये समंदर क्या|

कुछ भी हो लौटूंगा नहीं मझधार से,
चुना हु ऐसा सफ़र  मर गया तो क्या|
लौट के हंसी नहीं कराऊँगा संसार से,
फिर से सम्हलूँगा, डगमगा गया तो क्या|

7 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया और यही सोच रखना की
    कुछ करना है कुछ बनना है

    जयगुरुदेव

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    1. जयगुरुदेव भईया!!

      जी कोशिश होगी!

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