Monday, September 23, 2013

वो है ‘माँ ’



नन्ही आँखे खोली जब इस दुनिया में,
जन्मा जिसकी कोख से इस संसार में, वो है ‘माँ’
बचपन बीता खेल-कूद और विनोद में,
ये सुनहरे पल बिताए जिसकी गोद में, वो है ‘माँ’
सहम गया डर से जब इस दुनिया में,
मिली सुरक्षा तब जिसकी ममता के आँचल में, वो है ‘माँ’
निकल पड़ा कठिन डगर पे लक्ष्य पाने को,
जिसकी दुआ-प्रेम से मिला हौसला आगे जाने को, वो है ‘माँ’
जब पड़ा अकेला दुनिया के ठुकराने पर,
तब मिला सहारा जिसके शरण में जाने पर, वो है ‘माँ’
असमंजसता में जब मेरा दिल घबराया,
तब बार-बार जो नाम दिल ने बुलाया, वो है ‘माँ’
न नाराज होना हे प्रभु मुझसे,
क्योंकि जो नाम लेता हूँ पहले तुझसे, वो है ‘माँ’
तू हो कहीं भी मंदिर, मस्जिद, या मूरत में,
मैंने तो तुझे पाया बस एक ही सूरत में, वो है ‘माँ’

चलना ही है हर हाल में!


खुली आँखों में, तुने जो संजोया सपना,
अब जीवन का, उसे बना ले लक्ष्य अपना,
बन जा मुसाफिर, त्याग सर्वस्व अपना,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

उठ जाग हो तैयार
, बहुत सो लिया अब,
जीवन के लक्ष्य की राह, पकड़ना है अब,
मोह-प्रेम न हो बाधाएं
, त्याग कर ये सब,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में
|

चल दे अनजाने राह पर, मुसाफिर बन के,
आयेंगे राहों में संकट, घोर अंधकार बन के,
डर नहीं अँधेरे से, जला ले दीपक मन के,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

असफलताओं के काले बादल, जब छाएंगे,
कह देना आँखों से, वो पानी न बरसाएंगे,
न खोना हौसला, कदम तेरे जब लड़खड़ायेंगे,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

राह में धन-वैभव, ऐश्वर्य के चक्कर न पड़ना,
लोभ और माया के जाल में, कभी न फंसना,
ध्यान लक्ष्य का सदा रखना, राह में न ठहरना,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

रंग रूप भी राहों में, राही को रिझाने आते हैं,
सुंदरता से भ्रमित कर, लक्ष्य बिसराने आते हैं,
पल भर भी बिसर नहीं, ये तो भ्रम के नाते हैं,
 क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

मोह लोभ की कठिन परिक्षाओं से, निकलकर,
अब आ गया युद्धभूमि, सब संकटों से लड़कर,
कठिनाई से न डर, बढ़ आगे भयमुक्त बनकर,
क्योंकि तुझे तो चलना ही है हर हाल में|

हो जाएगा प्रभु खुश, देख तेरे मन का विश्वास,
साहस को नमन कर, करेगा पूरी वो तेरी हर आस,
सफलता तो खुद आएगी पिया-मिलन को तेरे पास,
क्योंकि तू ही तो है जो चल के आया है हर हाल में|



गाँव की याद

मैं अब आ रहा हूँ तुझसे मिलने ओ मेरे गाँव,
घर की ओर चलने को आतुर हो रहे मेरे पांव,
आज फिर याद आ रही है तेरे बगिय की छांव,
तेरे प्यार की धाराओं में डोल रही मन की नांव|

हर पल जलाती  है तेरी यादों की कड़ी धूप,
हर समय, हर जगह झलकता है तेरा रूप|
एक बार फिर तुझसे मिलना चाहता है मन,
बार बार खेतों की खड़ी फसलों में विचरता है मन|

मेरा तन फिर तेरी खुशबुओं में डूबना चाहता है,
तेरी यादों की अश्रुधाराओं में नहाना चाहता है|
वैसे तो मन लगाने को है यहाँ बहुत कुछ,
पर तेरे बिना नहीं भाता यहाँ का सब कुछ|