Tuesday, April 25, 2017

राष्ट्र हित में उचित है।

वन्दे मातरम्!


जो पैर राष्ट्र हित में कदम ने बढ़ा सके, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्रविरोध में जो बढ़े, फिर तो काट देना उचित है|

जो हाथ राष्ट्र हित में योगदान न दे सके, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्रविरोध में जो उठे, फिर तो काट देना उचित है|

जो आँख राष्ट्र सम्मान में न झुक सके, उसका होना धिक्कार है,
पर  राष्ट्र अपमान जो उठे, फिर तो फोड़ देना उचित है|

जो कान राष्ट्र गुणगान न सुन सके, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्र निंदा जो सुन सके, फिर तो काट देना उचित है|

जो जीभ राष्ट्र गौरव न कह सके, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्रविरोध में बात जो कह सके, फिर तो काट देना उचित है|

जो मस्तक राष्ट्रहित न सोच सके, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्र विरोधी विचार जो उपजे, फिर तो काट देना उचित है|

जिस धड़ के हृदय में राष्ट्रप्रेम न उठे, उसका होना धिक्कार है,
पर राष्ट्रविरोध जिसमे धड़के, फिर तो टुकड़ों में बांट देना उचित है|

-राम कुमार 'दीपक'

Saturday, May 7, 2016

सम्पूर्णता का एक शब्द- 'माँ'।


'माँ' बहुत छोटा सा एक शब्द है,
जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि उपलब्ध है।

'माँ' परिपूर्णता की परिभाषा है,
सृष्टि के सजीवता की आशा है।

'माँ' जीवन का सृजनहार है,
यह ही उत्पत्ति का आधार है।

'माँ' जननी संग पालक भी है,
यह रक्षक और संचालक भी है।

'माँ' जीवन में नाशकर्ता भी है,
हर कष्ट नाश की क्षमता भी है।

'माँ' स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश है,
त्रिदेव का एक शब्द में निवेश है।

'माँ' ईश्वर से भी बड़ी शक्ति है,
इसकी वंदना ही श्रेष्ठ भक्ति है।

'माँ' सर्वश्रेष्ठ कल्याणकारी मन्त्र है,
यह शब्द महावाक्य है, महामंत्र है।

Wednesday, October 14, 2015

ढल गई शाम ... होगा सवेरा!



ढल गई शाम, सूरज जा रहा जाने दो
अंधेरा हो रहा, रात को आने दो,
रात तो हमेशा के लिए नहीं होती,
गुजरने दो एक नई सुबह आने दो।

हर रात अंधेरी नहीं होती,
हर अमावस काली नहीं होती,
दीपों की माला से सब जगमग होता जहाँ,
वह रात ही सब की दीवाली होती।

व्योम से तो विलुप्त ही तो हुआ है प्रकाश,
शाम ढली है इससे क्या होना निराश,
आज अमावस नहीं, है पूनम की रात
सूरज नहीं तो क्या चंदा से चमके आकाश

सूरज के जाने के बाद आने वाली वो रात है,
वो दीवाली की अमावस, पूनम की रात है,
छाने दो अंधकार बस होना नहीं निराश,
क्योंकि आकाशगंगा में चमकती सितारों की बारात है।

है काली रात, तो होने दो घोर अंधेरा,
प्रभात से पूर्व अंधकार होता ही है घनेरा,
बस थोड़े ओर हिम्मत से कुछ देर सहना होगा,
चढ़ेगा गगन पर सूरज और फिर होगा सवेरा।